जींद : कपास की खेती करने वाले किसानों के लिए तेला वैज्ञानिक नाम 'जेस्सिड' खतरे की घंटी बनकर आया है। यह कपास के पौधे तथा पत्तों का रस चूसकर हानि पहुंचाने का काम करता है। कपास के खेत में ज्यादा तेला होने से प्रति एक के हिसाब से कपास उत्पादन में फर्क आता है। कपास के कुछ इलाकों में इसे मारने वाले दस्यु, बुगड़े, दीद्डे बुगड़े, कातिल बुगड़ तथा कंघेडू बुगड़े भी पैदा हो रहे हैं, जो किसान की मदद करके कपास को बचाने में मील के पत्थर का काम करेगे। वैसे तो इन दिनों कपास की फसल कई बीमारियां ने दस्तक दे दी है, जो कपास की फसल को बर्बाद करके किसान को अर्थिक नुकसान पहुंचा सकती हैं, लेकिन तेला नामक यह जीव किसानों पर भारी पड़ सकता है। इस समय किसानों द्वारा बोई गई कपास की फसल पूरे यौवन पर है। फूल, भौंकी तथा फल प्रचुर मात्रा में लग रहा है। ऐसे में तेले ने अपनी खूनी डंक चलाना शुरू कर दिया है। इस कीट की लंबाई तीन मिलीमीटर होती है। तेला के प्रौढ़ एवं निम्फ दोनों ही पौधे के पत्तों का रस चूसने का काम करते हैं। रस चूसने के साथ-साथ यह पौधे में जहर भी छोड़ने का काम करता है, जिससे पौधे की वृद्धि में फर्क पड़ता है। रस चूसने के कारण प्रकोपित पत्ते पले पड़ जात हैं। साथ ही लाल रंग के बिंदु नूमा निशान पड़ जाते हैं। ज्यादा असर होने के बाद पत्ता सुखकर नीचे गिर जाता है। इसके निम्फ करीबन 5 बार कांजली उतारते हैं। निम्फ से आगे कनका प्रौढ़ीय जीवन 40 से 60 दिन का होता है। अनेक बार ऐसा देखने में आया है कि किसान इसको मारने के लिए हजारों-हजारों रुपये के कीट नाशकों को छिड़काव करते हैं। कृषि विकास अधिकारी डा. सुरेद्र सिंह दलाल ने बताया कि तेला कपास की फसल में काफी नुकसान पहुंचाता है। किसानों को इसकी पहचान करनी चाहिए। इसको खत्म करने के लिए कई किसान मित्र कीट काफी हद तक कारगर साबित हुए हैं।
जींद : कपास की खेती करने वाले किसानों के लिए तेला वैज्ञानिक नाम 'जेस्सिड' खतरे की घंटी बनकर आया है। यह कपास के पौधे तथा पत्तों का रस चूसकर हानि पहुंचाने का काम करता है। कपास के खेत में ज्यादा तेला होने से प्रति एक के हिसाब से कपास उत्पादन में फर्क आता है। कपास के कुछ इलाकों में इसे मारने वाले दस्यु, बुगड़े, दीद्डे बुगड़े, कातिल बुगड़ तथा कंघेडू बुगड़े भी पैदा हो रहे हैं, जो किसान की मदद करके कपास को बचाने में मील के पत्थर का काम करेगे। वैसे तो इन दिनों कपास की फसल कई बीमारियां ने दस्तक दे दी है, जो कपास की फसल को बर्बाद करके किसान को अर्थिक नुकसान पहुंचा सकती हैं, लेकिन तेला नामक यह जीव किसानों पर भारी पड़ सकता है। इस समय किसानों द्वारा बोई गई कपास की फसल पूरे यौवन पर है। फूल, भौंकी तथा फल प्रचुर मात्रा में लग रहा है। ऐसे में तेले ने अपनी खूनी डंक चलाना शुरू कर दिया है। इस कीट की लंबाई तीन मिलीमीटर होती है। तेला के प्रौढ़ एवं निम्फ दोनों ही पौधे के पत्तों का रस चूसने का काम करते हैं। रस चूसने के साथ-साथ यह पौधे में जहर भी छोड़ने का काम करता है, जिससे पौधे की वृद्धि में फर्क पड़ता है। रस चूसने के कारण प्रकोपित पत्ते पले पड़ जात हैं। साथ ही लाल रंग के बिंदु नूमा निशान पड़ जाते हैं। ज्यादा असर होने के बाद पत्ता सुखकर नीचे गिर जाता है। इसके निम्फ करीबन 5 बार कांजली उतारते हैं। निम्फ से आगे कनका प्रौढ़ीय जीवन 40 से 60 दिन का होता है। अनेक बार ऐसा देखने में आया है कि किसान इसको मारने के लिए हजारों-हजारों रुपये के कीट नाशकों को छिड़काव करते हैं। कृषि विकास अधिकारी डा. सुरेद्र सिंह दलाल ने बताया कि तेला कपास की फसल में काफी नुकसान पहुंचाता है। किसानों को इसकी पहचान करनी चाहिए। इसको खत्म करने के लिए कई किसान मित्र कीट काफी हद तक कारगर साबित हुए हैं।
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छुपा रुस्तम! नामानुसार कीट प्रकाश फ़ॆलाने के लिये ध्न्यवाद. रवी जी
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