
फसलों को बर्बाद करने वाले किसान के दुश्मन कीटों को अब कातिल बुगड़ा 'असैनिनबग' नामक जीव खत्म करेगा। इस मित्र कीट के फसलों में आने से किसानों में खुशी की लहर है। यह बुगड़ा कपास, धान तथा बाजरे की फसल में पाया जा रहा है। बुगड़े द्वारा दुश्मन कीटों के खाने से किसान प्रति एकड़ के हिसाब से उत्पादन बढ़ा सकता है। इस बात में कोई शक नहीं है कि अगर फसल में कोई बीमारी नहीं आए तो किसान की पौ बाहर रहती है। दूसरा मिलीबग जैसी बीमारी किसान के खेत में कुछ नहीं छोड़ती है। अब जिले के किसानों को फसल को खत्म करने वाले मच्छर, मक्खियों, मिलीबगों, तितलियां, पतंगों, भृर्गो तथा भंवरों से डरने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह बुगड़ा इन सभी को अपनी डंक से मौत की नींद बड़ी ही आसानी से सुला सकता है। कातिल बुगड़ा जींद, जुलाना, सफीदों तथा उचाना के क्षेत्र में ज्यादा पाया जा रहा है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि किसानों को इसकी पहचान होनी बहुत ही जरूरी है। अगर किसानों को इसकी पहचान नहीं होगी तो इसे किसान इसे दूसरे दुश्मन कीटों की तरह खत्म कर सकते हैं। बुगड़ा डंक के जरिये से अपना जहर किसान के दुश्मन कीटों में फैलाता है। कातिल बुगड़े का जीवन काल 6 महीने का होता है। यह बाल्य काल से प्रौढ़ होने तक 65 से 90 दिन लेता है। इसी दौरान यह अपने जीवन में पांच बार कांजली छोड़ता है। मादा बुगड़ा समूहों में अंडे देती है। एक समूह में करीबन 40 अंडे होते हैं। मादा को ज्यादा भोजन की आवश्यकता होती है। इसी कारण यह ज्यादा कीटों को अपना भोजन बनाती है। इनके अंडो का रंग भूरा होता है। इसके शिशु को कीट वैज्ञानिक निम्फ कहते हैं। बुगड़े का रंगा काला, लाल तथा भूरा होता है। इसके शरीर की लंबाई 20 से 25 मिलीमीटर होती है। इसका गर्दन रूपी सिर लंबा होता है। बुगड़े की आंखें चमकदार होती हैं। इस बारे में जब कृषि विकास अधिकारी डा। सुरेद्र दलाल से बात की तो उन्होंने कहा कि कातिल बुगड़ा किसान का बहुत बड़ा मित्र कीट है। यह किसान की फसल की रक्षा दुश्मन कीटों से करता है। किसान को इसकी पहचान करनी चाहिए। कई बार किसान बिना पहचान के इस पर कीटनाशक का छिड़काव करवाकर इसे मार देते हैं। इसे मारना नहीं चाहिए।
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